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पुस्तक समीक्षा - सुहाग के नूपुर

पुस्तक समीक्षा - सुहाग के नूपुर

लेखक - श्री अमृतलाल नागर

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के उपन्यासों तथा उनमें भी गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन पर आधारित 'मानस का हंस' के कारण ख्याति प्राप्त हुए श्री अमृतलाल नागर जी द्वारा लिखित उपन्यास 'सुहाग के नूपुर' को पढा। यह उपन्यास स्त्री मन के अंतर्द्वंदों का गहरा चित्रण प्रस्तुत करता है। यह उपन्यास तमिल भाषा के महाकाव्य शिलप्पदिकारम् पर आधारित है। पर जिस तरह से नागर जी ने इस उपन्यास को लिखा है, उससे लग रहा है कि उन्होंने अपने मन से नारी चरित्रों का चित्रण किया है। इस उपन्यास का मूल उद्देश्य वैश्यावृत्ति में मजबूरीवश आयी महिलाओं के सामाजिक अपमान का चित्रण करना अधिक लगता है। उक्त काल का चित्रण इस तरह किया गया है कि यह सर्वकालिक रचना बन गयी है।

इस उपन्यास में वैसे तो अनेक पात्र हैं। पर इसकी कथा तीन पात्रों के इर्द-गिर्द घूमती है। माधवी दक्षिण भारत के नगर कावेरीपट्टम की वैश्या है। यथार्थ में उसे बचपन में ही एक वैश्या ने खरीदा था। माधवी अति सुंदर और नृत्य में पारंगत युवती है।

कोवलन कावेरीपट्टम के सेठ का योग्य पुत्र है। विधिवश वह माधवी से अनुराग करने लगता है। माधवी भी उससे अनुराग करने लगी। माधवी ने उसके अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष से संबंध स्थापित नहीं किया।

कलिंगी कावेरीपट्टम के दूसरे धनी सेठ की पुत्री है। जिसका विवाह कोवलन के साथ हुआ। कलिंगी का चित्रण एक पतिव्रता स्त्री के रूप में किया गया है।

इस उपन्यास की प्रमुख विषयवस्तु है - माधवी के मन में कलिंगी के लिये प्रतिस्पर्धा। वह वैश्या होने के बाद भी खुद को सती मानती है क्योंकि उसने कोवलन के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष से संबंध नहीं रखा।

इसी प्रतिस्पर्धा के लिये माधवी ऐसे काम करती जाती है जिन्हें किसी भी तरह उचित नहीं कहा जा सकता है। मुख्य रूप से उसकी इच्छा अपनी पुत्री का नाम वणिक कुल की बेटी के रूप में दर्शाने की रहती है।

यह कहना गलत नहीं है कि अपने रूप के दम पर सबसे धनी युवक का प्रेम पाने बाली गणिका एक सती की भांति सम्मान नहीं पा पाती। इस उद्देश्य में कभी उसका पति वाधा बनता है, कभी कलिंगी के पिता और कभी समाज और वैश्याओं का समाज भी।

वैसे माधवी के कृत्यों को सही नहीं ठहराया जा सकता है। साथ ही साथ कलिंगी के पातिव्रत्य धर्म की विजय भी दर्शायी गयी है। उसके बाद भी शायद मूल ग्रंथ की मान्यता के अनुसार माधवी को एकतरफा दोषी नहीं बताया गया है। वह भी पतिव्रता स्त्री थी। उस काल में बहुविवाह प्रचलित थे। यदि उसे भी वैश्या के कलंक से मुक्ति मिल जाती तो फिर शायद ही वह कलिंगी के प्रति वे षड्यंत्र करती।

इन स्थितियों का मूल कारण कोवलन ही अधिक नजर आता है। वह एक निश्चित निर्णय लेने में समर्थ नहीं रहा। कभी वह माधवी के रूप जाल में फसा अपनी विवाहिता पत्नी का अपमान करता है तो कभी उसे अपने कुल की कीर्ति याद आती है तथा माधवी को वैश्या मान उसे अपमानित करता है। शायद इसी कारण माधवी के मन में कलिंगी के प्रति प्रतिद्वंदिता बढती जाती है।

उपन्यास का अंत लेखक के मन को व्यक्त करता है। शायद अंत एकदम मौलिक है।

अंतिम दिन महाकाव्य की कथा समाप्त होने पर सबके जाने के बाद पगली महास्थविर के साथ बैठे महाकवि के पास आयी। बोली - सारा इतिहास सच सच ही लिखा है। केवल एक बात अपने महाकाव्य में और जोड़ दीजिये। पुरुष जाति के स्वार्थ और दंभ भरी मूर्खता से ही सारे पापों का उदय होता है। उसके स्वार्थ के कारण ही उसका अर्धांग नारी जाति पीड़ित है। एकांकी दृष्टिकोण से सोचने के कारण ही पुरुष न तो स्त्री को सती बनाकर ही सुखी कर सका और न वैश्या बनाकर ही। नारी के रूप में न्याय रो रहा है, महाकवि। उसके आंसुओं में अग्निप्रलय भी समायी है और जलप्रलय भी।

सहसा महाकवि ने पूछा - " तुम माधवी हो।"

" मैं नारी हूँ - मनुष्य समाज का व्यथित अर्धांग।" कहकर पगली चैत्यगृह की और चली गयी।

कुल मिलाकर यह नारी के विविध रूपों को अलग दृष्टिकोण से व्यक्त करती अनोखी रचना है। जिसे एक बार पढना तो बनता है।

दिवा शंकर सारस्वत

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5 Comments

Babita patel

04-Sep-2023 08:24 AM

Amazing post

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kashish

03-Sep-2023 04:29 PM

Nice

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KALPANA SINHA

03-Sep-2023 09:39 AM

Nice

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